लेखनी कविता -पंखा - बालस्वरूप राही

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पंखा / बालस्वरूप राही बटन दबाते ही चल पड़ता सुस्ती नहीं दिखाता है, इतनी सारी हवा न जाने चुरा कहाँ से लता है। कितनी ही गर्मी हो बाहर कमरा ठंडा कर ...

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